मरणोपरांत जीवन के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष अनुभवों के उदाहरणों से परिपूर्ण ‘Life After Life‘ पुस्तक के लेखक डा. रेमन्ड इ. मूडी हैं। जिन्होंने 50 ऐसे व्यक्तियों के अनुभवों को इस पुस्तक में संग्रहीत किया है। जिन्हें डॉक्टरों ने मृतक घोषित कर दिया था। किन्तु थोड़ी देर बाद वह पुनः जीवित हो उठे। स्वर्गीय अनुभवों से युक्त इस पुस्तक के कई बार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
लेखक जब कारोलिना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था। तब उसके एक छात्र ने अपनी दादी की मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो उठने की बात बताई। जिसमें मृत्यु के बाद अंधेरी गुफा, घंटियों की आवाज, महाप्रकाश व पितरों की आत्मा से साक्षात्कार की बात उस महिला ने स्वीकार की थी।
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इसके विपरीत जिनने निराशा, दुर्बुद्धि एवं दुष्टता से घिरी मनःस्थिति एवं परिस्थिति में जीवन गुजारा है उन पर इसी स्तर के स्वप्न मरणोत्तर जीवन में छाये रहते हैं। यह अपना रचा नरक है जो जीवित रहते भी दीखता है और शरीर छोड़ने के उपरान्त भी। स्वर्ग और अपने इसी संस्कार की तरह अदृश्य प्रगति का कोई घटक हो सकता है पर इसमें किस द्वार प्रवेश किया जाय यह पूर्णतया अपनी ही आदतों पर निर्भर रहता है।
उपरोक्त शोध में ऐसे उत्तर भी मिले हैं जिनसे प्रतीत होता है की मारने के बाद का समय डरावना भी होता है और नीरस तथा कष्टकारक भी। इसी स्थिति का विवेचन कोई चाहे तो नरक की विभीषिकाओं के साथ भी संगति बिठा सकता है।
एक व्यक्ति का अनुभव है की जैसे ही वह मरा वह एक अंधकार युक्त सुरंग में पहुँच गया।
एक दूसरे का कहना है की मर कर वह सर्वप्रथम एक अन्धकार युक्त सिलिंडर में पहुँच गया।
एक मृतक व्यक्ति ने जीवित होने पर बताया की मेरे मस्तिष्क में की बुरी भन-भनाहट सुनायी पड़ रही थी , मैं उससे बेचैन हो उठा। उस दृश्य को कभी नहीं भूल सकता।
मरने के बाद भी जीवात्मा अपने मृत शरीर के इर्द-गिर्द मंडलाता रहता है और उसका अस्तित्व बने रहने तक उसके समीप ही बना रहता है। इसलिए स्वजनों द्वारा मृत शरीर को जल्दी ही समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस दृष्टि से शरीरों को बहुत समय सुरक्षित रखने का प्रयास अनुपयुक्त प्रतीत होता है। संबंधी लोग मोह वश उसकी स्मृति को बनाये रहने के लिए अवशेषों की रक्षा भी करते पाए जाते हैं पर मृतात्मा को शांति और सद्गति की दृष्टि से यही उचित है की उसका मोह मृत शरीर से छूट सके ऐसा प्रयत्न किया जाय। उसी में उसके शोक की निवृत्ति और भावी प्रगति का पथ-प्रशस्त होता है।
एक व्यक्ति ने बताया की वह जल में डूब कर मर गया था। मरने के बाद उसकी आत्मा जलाशय से 4-5 फुट ऊंचाई पर रूक गईं और वहीँ से अपने शरीर को डूबते उतराते देखा था। उस समय वह अपने को अत्यंत हल्का महसूस कर रहा था।
एक मृतक महिला ने बताया की मरते ही मैं तैरते-तैरते धीरे-धीरे ऊपर उठने लगी। कोडपिन्क , कोडपिन्क के नर्सों की आवाज सुनी और देखा की 10-12 नर्से उसके शरीर को घेर कर खड़ी हैं। डॉक्टर को बुलाया गया। मैंने डॉक्टर को अपने कमरे में प्रवेश करते देखा था। मैं छत तक पहुँच कर रूक गईं और वहां से यह कौतुक देखती रही। मैं स्वयं को अत्यंत हल्की-फुल्की महसूस कर रही थी। डॉक्टरों के आदेशानुसार जैसे ही डिफी ब्रिलेटर मशीन द्वारा मेरे शरीर को झटके दिए गए मैंने सारे शरीर को उछलते पाया, हड्डियों में दर्द हुआ। मैं पुनर्जीवित हो गयी।
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हर जन्म लेने वाले का मरण निश्चित है, मरण के उपरान्त जीवन का क्रम भी दिन और रात्रि की तरह चलता रहता है। इसका मध्य काल कैसे बिताता है इसका कुछ आभाश उपरोक्त अनुभवों से मिलता हैं जो थोड़े समय तक मृत्यु की गोद में रहने के बाद वापिस लौटे और अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने में समर्थ रहे।
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